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जड़ पदार्थों का उपभोग चैतन्य शक्ति करती है…… ब्रह्मïकुमारी करुणा दीदी
प्रेस विज्ञप्ति क्र. १:
जड़ पदार्थों का उपभोग चैतन्य शक्ति करती है…… ब्रह्मïकुमारी करुणा दीदी
उज्जैन १० मई : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा दत्त अखाड़ा क्षेत्र बडऩगर रोड में आयोजित राजयोग अनुभूति शिविर ब्रह्माकुमारी करुणा दीदी ने अपने प्रवचन व्याख्यान में कहा कि इस दुनिया में जितने भी जड़ पदार्थ हैं, वह स्वयं अपने ही उपयोग के लिए नहीं बनी हैं। सभी जड़ पदार्थों का उपभोग करने वाला उससे भिन्न कोई न कोई चैतन्य प्राणी होता है। हमारा यह शरीर भी जड़ पदार्थों से बना पांच तत्वों का पुतला है तो जरूर इसका उपयोग करने वाला इससे भिन्न कोई चैतन्य शक्ति होनी चाहिए। जब हम कहते हैं कि मुझे शान्ति चाहिए? तो यह कौन है जो कहता है कि मुझे शान्ति चाहिए? शरीर शान्ति नहीं चाहता। शरीर की शान्ति तो मृत्यु है।
आगे इस पर प्रकाश डालते हुये बतलाया कि आत्मा कहती है कि मुझे शान्ति चाहिए। आत्मा एक चैतन्य शक्ति है। शक्ति को स्थूल नेत्रों से देखी नहीं जा सकता लेकिन मन और बुद्घि से उसका अनुभव किया जाता है। जैसे बिजली एक शक्ति है, वह दिखाई नहीं देती किन्तु बल्ब जल रहा है, पंखा चल रहा है, तो हम कहेंगे कि बिजली है। आत्मा के गुणों का अनुभव करके उसकी उपस्थिति का अहसास होता है। आत्मा का स्वरूप अति सूक्ष्म ज्योतिबिन्दु के समान है। उसे न तो नष्टï कर सकते हैं और न ही उत्पन्न कर सकते हैं। वह अविनाशी है। आत्मा के शरीर से निकल जाने पर न तो शरीर कोई इच्छा करता हैं और न ही किसी तरह का कोई प्रयास करता है। मृत शरीर के पास ऑंख, मुख, नाक आदि सब कुछ होता है लेकिन वह न तो देख सकता है, न ही बोल अथवा सुन सकता है। आत्मा तीन शक्तियों के द्वारा अपना कार्य करती है। वह किसी भी कार्य को करने से पहले मन के द्वारा विचार करती है, फिर बुद्घि के द्वारा यह निर्णय करती है कि उसके लिए क्या उचित है और क्या अनुचित? तत्पश्चात किसी भी कार्य की बार-बार पुनरावृत्ति करने पर वह उस आत्मा का संस्कार बन जाता है।
आत्मा की सात मूलभूत विशेषताएं होती हैं- अतीन्द्रिय सुख, ज्ञान, गुण, आनन्द, प्रेम, पवित्रता और शक्ति। यह सभी आत्मा के मौलिक गुण हैं, जो कि शान्ति की अवस्था में हमें अनुभव होते हैं। हमारा मन किसी न किसी व्यक्ति, वस्तु या पदार्थ की स्मृति में भटकता रहता है, अब उसे इन सबसे उपराम हो एक परमात्मा की याद में एकाग्र करना चाहिये। इसी से मनुष्य आत्मा में आत्मविश्वास और शक्ति आएगी। आजकल जीवन के हर क्षेत्र में जिस तरह से नित नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उसके परिणाम स्वरूप तनावजन्य परिस्थितियॉं भी बढ़ती जा रही हैं। ऐसे वातावरण में कार्य करते हुए शान्ति की गहन अनुभूति करने, कर्मों में कुशलता लाने तथा मानसिक तनाव से मुक्ति प्राप्त कर सन्तुलित जीवन जीने की कला सीखने के लिए राजयोग का अभ्यास बहुत लाभकारी सिद्घ हुआ है।
प्रेषक: मीडिया प्रभाग,
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय
सत्यम शिवम सुन्दरम मेला परिसर, दत्त अखाड़ा क्षेत्र,
उज्जैन सम्पर्क: ९४२५५१९५१४
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